Monday, October 28, 2019

Rajiv Dixit ji_अगर ये राजा ना होते तो 100 साल पहले ही आजाद हो जाता भारत ! एक मुख्यमंत्री भी इन्ही में से एक है


दोस्तों आपको तो पता ही होगा कि सन 1857 में अंग्रेजो के खिलाफ देश में बहुत बड़ी क्रांति हुई थी। उस क्रांति में पुरे भारत में 3 लाख 65 हजार अंग्रेज मारे गए थे। कुछ 2-4 अंग्रेज जिन्दा बच गए फिर वो भागकर किसी तरह London पहुच गए। और उन्होंने भागने के लिये पहले अपने पुरे शरीर को काला किया ताकि वो भारतवासी लगे। उन्होंने अंग्रेजो की संसद में सारी कहानी सुनाई कि भारत में तो विद्रोह हो गया है बगावत हो गयी है। इसके बाद अंग्रेजो की संसद में एक प्रशन आया कि आगे कभी की ऐसा कोई विद्रोह ना हो, इसके लिये क्या क्या करना चाहिए। तो कई लोगो ने अपने प्रेसिडेंट से कहा कि दुबारा से ऐसा ना हो इसके लिये क्या करना चाहिए। तो वहा के प्रेसिडेंट ने कहा कि तुम चिंता ना करो हमारे भारत के कई मित्र है उनकी मदद से हम फिर भारत में जायेंगे। अब आप ये सोच रहे होंगे कि उनके मित्र और दोस्त कौन??? हमारे लिये जो गद्दार वो अंग्रेजो के लिये मित्र और दोस्त। क्या आपको पता है इस देश में कई परिवारों को अंग्रेजो ने रायबहादुर, सर, नाईट हुड की पदवी दे रखी थी। और ये पदवी लेने वाले सब परिवार गद्दार निकले और इन्होने अंग्रेजो की खूब मदद की।

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सबसे बड़ा परिवार जिसने 1857 के विद्रोह के बाद जिसने अंग्रेजो की मदद की वो है पटियाला का परिवार जो आज भी जिन्दा है और उसी परिवार का एक व्यक्ति मुख्यमंत्री बनता रहता है पंजाब में। पटियाला के नवाब खानदान ने 1857 की क्रांति के बाद क्रांतिकारियों की मदद नहीं की बल्कि अंग्रजो की मदद की। और उन्होंने अंग्रेजो को एक पत्र लिखा जिसकी कॉपी राजीव दीक्षित जी के पास थी, जो समय आने पर वो पुरे देश को दिखाने वाले थे। उस पत्र में वो नवाब लिखता है कि “आप आईये और भारत को दुबारा गुलाम बनाइये मै आपको 20 हजार सैनिक दूंगा और 20 करोड़ स्वर्ण मुद्राए दूंगा, आप फिर भारत में आकर अपना राज्य स्थापित करिए”। तो पटियाला के नवाब के कहने पर अंग्रेज आ गए।

इसी तरह हरियाणा के जींद का एक नवाब था इसने अंग्रेजो की मदद की। फिर ग्वालियर का ये जो सिंधिया खानदान है इसने अंग्रेजो की बहुत मदद की। ऐसे ही हैदराबाद का एक सलारजन खानदान है जिसको हैदराबाद का निजाम भी कहते थे। ऐसे कुल मिलकर 10-12 परिवार थे जिन्होंने अंग्रेजो को स्वर्ण मुद्राए दी और भारत के क्रांतिकारियों से लड़ने के लिये सैनिक भी दिए। तो इन सब राजाओ की मदद से अंग्रेजो ने फिर से इस देश में परिवेश किया और क्रांतिकारियों की कत्लेआम शुरू कर दिया पुरे देश में।

1 सितम्बर 1857 से लेकर 1 नवम्बर 1858 तक हिन्दुतान से करीब 7 लाख क्रांतिकारियों का अंग्रेजो ने कतल करवा दिया। और कतल भी कैसे किया अगर आप सुनेगे तो हैरान हो जायेंगे। एक बिठुर नाम का छोटा सा शहर है कानपूर के नजदीक वहा के 2 बड़े क्रन्तिकारी थे नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे। ये दोनों क्रांतिकारियों के शहर के 24 हजार लोगो को गोलियों और तलवार से काटकर मार दिया। तीन महीने के छोटे -2 बच्चे से लेकर 90 साल के बुजुर्ग तक किसी को नहीं बक्सा। उन सबका अपराध कोई भी नहीं था बस यही अपराध था कि वो लोग नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे के शहर में रहते थे। तो अंग्रेज कहते थे ये सब हमारे खिलाफ भगावत करेंगे और सब क्रन्तिकारी बनगे इसलिये सबको कतल करो और ये कत्लेआम अंग्रेजो ने भारत के पटियाला नवाब (राजा), जींद का राजा, गवालियर का सिंधिया खानदान, इन सबके सैनिको की मदद से किया। और ये सारे कत्लेआम पुरे देश में हुए जिसके कारण अंग्रेजो की सरकार फिर से स्थापित हो गई। अंग्रेजो की सरकार स्थापित होने के पश्चात् 1 नवम्बर 1858 को क्वीन विक्टोरिया ने एक ऐलान किया जो भारत के बड़े बड़े अखबारों में छपा। उस ऐलान के कहा गया कि आज के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार नहीं चलेगी कानून की सरकार चलेगी और वो सब कानून अंग्रेजो की संसद बनाएगी और उसी के आधार पर ये देश चलाया जायेगा। अब ब्रिटिश पार्लियामेंट में कानून बनाने के लिये बहस ये हुई कि कानून ऐसे बनाए जाये कि सभी भारतवासी कभी भी दुबारा से खड़ा ना हो सके और अंग्रेजो के खिलाफ बगावत ना कर सके।

अंग्रेजो के खिलाफ जो पहली बगावत थी वो शास्त्र बगावत थी उसमे हतियारो का इस्तेमाल हुआ था। इसके बाद अंग्रेजो ने सबसे पहला कानून ये बनाया कि घर में हथियार वही रख सकेगा, जिसके पास लाइसेंस होगा। जिसके पास नहीं होगा वो हथियार नहीं रख सकता। तो अंग्रेजो ने “Licencing of Arms Act” पहला कानून बनाया और इस कानून के आधार पर ये किया गया कि घर घर की तलासियाँ ली गई कि किसके घर में बन्दुक है किसके घर में हसिया है, छुरा है, चाकू है सब अंग्रेजो ने छीन लिए क्योकि अंग्रेजो को इन्ही हतियारो से डर था कि कही ये लोग फिर से बगावत ना कर दे। और एक बार अगर भारतवासियों का हथियार छीन गए तो भारतवासी बहुत कमजोर हो गए और वो कमजोरी इतनी भारी पड़ी कि अगले 90 साल तक फिर हमें अंग्रेजो की गुलामी सहनी पड़ी। और ये कानून आजादी के करीब 70 साल बाद आज भी चल रहा है। आपको तो पता ही होगा हथियार वही रख सकता है जिसके पास लाइसेंस होगा और लाइसेंस देने का कम सरकार करती है पहले गोरे अंग्रेजो की सरकार यव काम करती थी अब काले अंग्रेजो की सरकार ये काम कर रही है।

दूसरा एक कानून अंग्रेजो ने बनाया इंडियन पुलिस एक्ट। कभी भी भारतवासी अंग्रेजो के खिलाफ कुछ ना करे उसके लिये उनको मारकर, पीटकर, दबाकर, कुचलकर सबकी कण्ट्रोल में रखने के लिये एक एजेंसी बनाई जिसको पुलिस कहा जाता है। क्या आपको पता है 1858 से पहले इस देश में कोई पुलिस नहीं थी। किसी भी राजा ने पुलिस नहीं रखी हा आर्मी रखी थी लेकिन पुलिस नहीं रखी। क्योकि पुलिस की जरुरत नहीं थी अपने ही लोगो को मारना पीटना, दबाना, धमकाना ये काम कोई नहीं करता है। कोई भी राजा अपनी प्रजा पर ये अत्याचार नहीं करेगा। लेकिन अंग्रेजो ने पुलिस बनाई जिसका नाम रखा “इंडियन पुलिस एक्ट” और उसमे जो आधार दिया गया वो ये कि हर पुलिस वाले को Right to offence होगा लेकिन किसी भी भारत के नागरिक को Right to Defence नहीं होगा। मतलब ये कि कोई भी पुलिस अधिकारी आपको पकड़कर लाठी से मारने लगे तो आपको लाठी पकड़ने का भी अधिकार नहीं होगा, आप सिर्फ पिटते रहिये। और अगर अपने उसकी लाठी पकड़ ली तो केस आपके खिलाफ बनेगा कि अंग्रेज अधिकारी को ड्यूटी करने से आपने रोका। और यही कानून आजादी के करीब 70 साल बाद भी चल रहा है

अंग्रेजो ने ऐसा ही एक कानून बनाया इंडियन सिविल सर्विसेज एक्ट। हमारे यहा ग्राम पंचायत होती थी जो गाँव में हर करी करती थी जैसे टैक्स लगाना या उसको गाँव के विकास के लिये खर्च करना। ये सब अधिकार छिनकर कलेक्टर को दे दिए। और उस पोस्ट को DM यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट या कलेक्टर कहते है और ये हिज कानून के तहत हुआ उसको इंडियन सिविल सर्विसेज एक्ट कहते है। ये कानून भी अभी तक वैसे का वैसा ही चल रहा है।

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Rajiv Dixit ji_जिस ICS की नौकरी के लिए लोग 4 साल तैयारी करते थे, नेताजी ने 7 महीने में क्लियर करके इस्तीफा दे दिया था


दोस्तों क्या आपको पता है अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को ऑफर किया था कि यह जो सत्ता चल रही है इसमें हमारे साथ शामिल हो जाओ, तुम भी लूटो, हम भी लूटें. सारे क्रांतिकारियों ने साफ मना किया था कि तुम्हारी इस लुट की व्यवस्था में हमें शामिल नहीं होना, हमें तो संपूर्ण आजादी चाहिए. संपूर्ण स्वराज्य चाहिए और जिस क्रांतिकारी ने यह बात सबसे पहले कही थी उन्हीं का नाम था नेताजी सुभाष चंद्र बोस. क्या आपको मालूम है उनके जीवन की विडंबना क्या थी उनको आईसीएस (ICS) की नौकरी में सेलेक्ट होना पड़ा. उनके पिताजी की इच्छा की पूर्ति के लिए, क्योकि पिता जी चाहते थे कि मेरा बेटा कलेक्टर बने और बेटे को बार-बार वह ताना मारते थे कि तू बन नहीं सकता. तू होशियार कम है, तेरे पास तैयारी नहीं है, इसलिए बहाना बनाता रहता है. तो बेटे ने अपनी पात्रता सिद्ध करने के लिए परीक्षा दी और उस जमाने में आई सी एस की परीक्षा देने के लिए चार-चार साल लोग पढ़ाई करते हैं. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिर्फ 7 महीने पढ़ाई की थी और उतनी पढ़ाई में उन्होंने आई सी एस के टॉपर की लिस्ट में चौथी पोजीशन पाई थी. उस जमाने में आईसीएस टॉप करना किसी भारतीय लड़के के लिए संभव ही नहीं था, क्योंकि इस परीक्षा में अंग्रेज टॉप किया करते थे. वह पहले भारतीय व्यक्ति थे जिनको टॉपर लिस्ट में चौथा स्थान मिला

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एक बहुत मजेदार घटना है वह लंदन गए थे, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर आईसीएस की परीक्षा में बैठे थे. जिस दिन रिजल्ट आया, उनके सहयोगी रिजल्ट देखने के लिए गए थे, लेकिन वह नहीं गए तो उनके सहयोगियों ने नाम देखा तो कहीं नहीं मिला तो उनको आकर कहा कि तुम तो पास ही नहीं हुए तो उन्होंने कहा ठीक है कोई बात नहीं पास नहीं हुआ तो.

शाम को ब्रिटिश गवर्नमेंट के डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी आया और नेताजी को बोला कि तुम्हारा नाम पास होने वालों में नहीं है, ऊपर वाली लिस्ट में है और वह लिस्ट अभी तक लगी नहीं है. अब सुभाष चंद्र बोस को दुविधा हो गई कि मैं तो आईसीएस हो गया. अब मुझे कलेक्टर होना पड़ेगा. कलेक्टर होने का मतलब भारतियों को लूटना पढ़ेगा, लूट का कुछ हिस्सा अंग्रेजों को देना पड़ेगा. तो उनके मन में यह शुरू हुआ कि या तो मैं इस लूट में शामिल हो जाऊं या लूट की व्यवस्था के बाहर निकल कर देश के लिए काम करूं

अंत में उनके दिल ने कहा कि तुमको तो लूट में शामिल नहीं होना है क्योंकि तुम्हारा जन्म इसके लिए नहीं हुआ है. उन्होंने नौकरी को रिजाइन कर दिया. जब उन्होंने इस्तीफा दिया था ब्रिटिश सिस्टम में हड़कंप मच गया था क्योंकि भारत के कई लड़के पहले आईसीएस बन चुके थे किसी में हिम्मत नहीं हुई थी इस्तीफा देने की. सुभाष चद्र बोस जी ने इस्तीफा दिया और इस्तीफे में उन्होंने लिखा कि मै इस तंत्र में शामिल इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि मेरी भारत माता की लूट के लिए यह तंत्र बना है और मैं मेरे देश को लुटू यह मेरा दिल मुझे गवाही नहीं देता. इसलिए मै छोड़ रहा हूं. नेताजी ने रिजाइन किया, बोरिया बिस्तर समेट के भारत आ गए, पिताजी के दिल पर वज्रपात हो गया कि बेटे ने आईसीएस को लात मार दी. तो बेटे ने पिता को समझाया कि मै हर बार इस नौकरी को तो लात ही मारूंगा. जब तक यह व्यवस्था भारत को लूटने की व्यवस्था है. मैं इसमें शामिल नहीं हो सकता.

इसलिए नेता जी ने आईसीएस को छोड़ा और जैसे ही आईसीएस छोडी उन्होंने तो सारा देश उनके लिए खड़ा हो गया. जब वह लंदन से वापस आए थे उस समय पानी के जहाज चला करते थे. बंबई में उतरे थे जो हुजूम बंबई में निकला था. वो तो गजब के लोग थे उन्होंने उसी दिन कह दिया था कि अब तो भारत आजाद हो जाएगा क्योंकि जब मुझे समर्थन देने के लिए इतने लोग भारत में है तो मैं जब गांव गांव जाऊंगा तब कितने लोग खड़े हो जाएंगे. उसी कॉन्फिडेंस से उसी आश्वासन पर उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया था. और जब फौज बनाई थी तब माताओं ने अपने मंगलसूत्र उतार के उन को दान किए थे. एक मां उनके पास आई थी अपने अंधे बेटे को लेकर कि इसको फौज में ले लो तो उन्होंने कहा इसको तो दिखाई नहीं देता तो बेटे ने कहा कि दिखाई तो नहीं देता लेकिन आप की फौज में आ जाऊंगा तो दुश्मन की एक गोली तो कम कर ही दूंगा. दोस्तों बहुत ही दुःख की बात है कि ये लूट का तंत्र आज भी चल रहा है, जो कानून अंग्रेज बनाकर गए थे वो आज भी चल रहे है.

Tuesday, October 15, 2019

Top 10 motivational quotes that inspire you in hindi

Top 10 motivational quotes of all time in hindi

1.जिनमें अकेले चलने का हौसला होता है उनके पीछे 1 दिन काफिला होता है

2.सोच अच्छी होनी चाहिए क्योंकि नजर का इलाज तो मुमकिन है पर नजरिए का नहीं

3.सोच अच्छी होनी चाहिए क्योंकि नजर का इलाज तो मुमकिन है पर नजरिए का नहीं

4.आप तब तक नहीं हार सकते जब तक कि आप प्रयास करना छोड़ नहीं देते

5.तुम्हारा समय सीमित है इसलिए इसे किसी और की जिंदगी जी कर व्यर्थ मत करो

6.जो अपने कदमों की काबिलियत पर विश्वास रखते हैं वही अक्सर मंजिल पर पहुंचते हैं

7.छोटा बदलाव बड़ी कामयाबी का हिस्सा होता है

8.निंदा से घबराकर अपने लक्ष्य को ना छोड़े क्योंकि लक्ष्य मिलते ही निंदा करने वालों की राय बदल जाती है

9.किस्मत मौका देती है पर मेहनत चौंका देती है

10.ना भागना है ना रुकना है बस चलते रहना है

picture shonjai from pixabay

Monday, October 14, 2019

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